ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी में शामिल हुआ फुकरे का फेमस शब्द ‘जुगाड़’

जुगाड़ का अर्थ

जुगाड़ का अर्थ - win

लघुकथा संग्रह - Featuring a collection of Contemporary Indian Short Stories

I am a big fan of the short story, possibly because I find it difficult to write prose longer than a few thousand words. But mostly because there are very few literature formats that are as reader friendly and adaptable as the short story. Given below is a collection of contemporary Indian writings I found on the God sent website www.gadyakosh.org. I took the trouble to find and post a few good ones. You can either read them here or directly on the website since I have linked each title to its web page. (Reading on the website recommended). Hope you like them. Enjoy.
अकेले भी जरूर घुलते होंगे पिताजी / बलराम अग्रवाल
पाँच सौ…पाँच सौ रुपए सिर्फ…यह कोई बड़ी रकम तो नहीं है, बशर्ते कि मेरे पास होती—अँधेरे में बिस्तर पर पड़ा बिज्जू करवटें बदलता सोचता है—दोस्तों में भी तो कोई ऐसा नजर नहीं आता है जो इतने रुपए जुटा सके…सभी तो मेरे जैसे हैं, अंतहीन जिम्मेदारियों वाले…लेकिन यह सब माँ को, रज्जू को या किसी और को कैसे समझाऊँ?…समझाने का सवाल ही कहाँ पैदा होता है…रज्जू अपने ऊपर उड़ाने-बिगाड़ने के लिए तो माँग नहीं रहा है रुपए…फाइनल का फार्म नहीं भरेगा तो प्रीवियस भी बेकार हो जाएगा उसका और कम्पटीशन्स में बैठने के चान्सेज़ भी कम रह जाएँगे…हे पिता! मैं क्या करूँ…तमसो मा ज्योतिर्गमय…तमसो मा…।
“सुनो!” अचानक पत्नी की आवाज सुनकर वह चौंका।
“हाँ!” उसके गले से निकला।
“दिनभर बुझे-बुझे नजर आते हो और रातभर करवटें बदलते…।” पत्नी अँधेरे में ही बोली, “हफ्तेभर से देख रही हूँ…क्या बात है?”
“कुछ नहीं।” वह धीरे-से बोला।
“पिताजी के गुजर जाने का इतना अफसोस अच्छा नहीं।” वह फिर बोली,“हिम्मत से काम लोगे तभी नैय्या पार लगेगी परिवार की। पगड़ी सिर पर रखवाई है तो…।”
“उसी का बोझ तो नहीं उठा पा रहा हूँ शालिनी।” पत्नी की बात पर बिज्जू भावुक स्वर में बोला,“रज्जू ने पाँच सौ रुपए माँगे हैं फाइनल का फॉर्म भरने के लिए। कहाँ से लाऊँ?…न ला पाऊँ तो मना कैसे करूँ?…पिताजी पता नहीं कैसे मैनेज कर लेते थे यह सब!”
“तुम्हारी तरह अकेले नहीं घुलते थे पिताजी…बैठकर अम्माजी के साथ सोचते थे।” शालिनी बोली,“चार सौ के करीब तो मेरे पास निकल आएँगे। इतने से काम बन सलता हो तो सवेरे निकाल दूँगी, दे देना।”
“ठीक है, सौ-एक का जुगाड़ तो इधर-उधर से मैं कर ही लूँगा।” हल्का हो जाने के अहसास के साथ वह बोला।
“अब घुलना बन्द करो और चुपचाप सो जाओ।” पत्नी हिदायती अन्दाज में बोली।
बात-बात पर तो अम्माजी के साथ नहीं बैठ पाते होंगे पिताजी। कितनी ही बार चुपचाप अँधेरे में ऐसे भी अवश्य ही घुलना पड़ता होगा उन्हें। शालिनी! तूने अँधेरे में भी मुझे देख लिया और मैं…मैं उजाले में भी तुझे न जान पाया! भाव-विह्वल बिज्जू की आँखों के कोरों से निकलकर दो आँसू उसके कानों की ओर सरक गए। भरे गले से बोल नहीं पा रहा था, इसलिए कृतज्ञता प्रकट करने को अपना दायाँ हाथ उसने शालिनी के कन्धे पर रख दिया।
“दिन निकलने को है। रातभर के जागे हो, पागल मत बनो।” स्पर्श पाकर वह धीरे-से फुसफुसाई और उसका हाथ अपने सिर के नीचे दबाकर निश्चेष्ट पड़ी रही।
चलोगे / रमेश बतरा
रास्ता पैदल का ही था, मगर मेरी तबीयत सुस्त थी। मैंने एक रिक्शावाले को रोक लिया ।
-- चलोगे... स्टेशन?
-- चलूंगा जी, अपना काम ही चलना है। रिक्शावाला गद्दी से उतरकर बाइज्ज़त बोला-- आइए, बैठिए।
किसी रिक्शेवाले से इतना सम्मान पाकर मैं आत्ममुग्ध हो गया। मेरी आवाज़ का अन्दाज़ ही अजब हो उठा-- कितने पैसे लेगा?
-- जो मरज़ी हो दे देना, साहब! रिक्शावाले ने कहा, मगर मुझे उसकी विनम्रता में कोई सदाशयता महसूस नहीं हुई, बल्कि वह मुझे संदेहास्पद प्रतीत होने लगा। रिक्शावाला और उसकी बोलचाल में इतना सलीका, इतनी लज्जत। ...जरूर गुंडई करेगा। बिना कुछ तय किए बैठा लेगा और स्टेशन पर पहुँचकर अपने साथियों के बीच ज़्यादा पैसे मांगकर मुझे जलील करेगा। इसलिए मैंने कुछ खिन्न होकर कहा -- न, तू हमें पहले ही बता दे। अपने–आप पैसे देने का झंझट मैं नहीं पालता।
-- झंझट काहे का साहेब, बीस–पच्चीस पैडल–भर का तो रास्ता है... अब तक तो पहुँच भी जाते इस्टेशन। -- फिर तू बोल ही क्यों नहीं देता अपने मुँह से? मैं अपनी बात पर अड़ा रहा। रिक्शावाले ने मुझे निगाह–भर देखा और एकदम लापरवाह होता हुआ बोला-- आप तो ऐसे कह रहे हैं जैसे मैं साला कोई 'मुहर' ही मांग लूंगा।... आइए बैठिए, मैं उधर ही जा रहा हूँ... आप वहाँ उतर जाइएगा... बस्स?
ध्यान नहीं आया कि तुम लड़की हो / विनीत कुमार
"अरे नीर, तुम अचानक? फोन पर बताया नहीं कि तुम आ रहे हो? और तुम तो बुरी तरह भीग गए..जींस से इतना पानी टपक रहा है...रुको मैं अभी तुम्हारे लिए कपड़े लेकर आती हूं...लेकिन तुम्हें तो मेरे कपड़े आएंगे नहीं...आइडिया! खादी का कुर्ता-पायजामा आ जाएगा तुम्हें...अभी लाती हूं"
नीलिमा कपड़े लाने दूसरे कमरे चल देती है...जब तक कपड़े लेकर वापस आती तब तक नीर अपना काम कर चुका था.
"ये क्या पागलपंती है नीर? तुमने मेरी पोल्का डॉटवाली लोअर पहन ली और ये टीशर्ट. टीशर्ट पहनते वक्त पढ़ा भी तुमने कि इस पर क्या लिखा है? पागल तो नहीं हो. इसे पहनकर मेट्रो से वापस अपने घर जाओगे? लोग हंसेंगे नहीं कि ये कौन लड़का है जो स्कीनी पोल्का डॉट लोअर में; लड़की के कपड़े पहने घूम रहा है?"
"अरे नहीं, कुछ नहीं कहेंगे. किसकी मजाल है कि मुझे कोई कुछ कह दे. फिर कह भी दिया तो कह दूंगा- लड़की के कपड़े नहीं पहने हैं मिस्टर, इसी बहाने एक चुटकी नीलिमा को अपने साथ लेकर घूम रहा हूं और अगर लड़कियों ने ठहाके लगाए या एटीट्यूड में स्माइल पास की तो जोर से कहूंगा- जलन होती है देखकर? तेरे उन घोंचू, बकरे-सी दाढ़ी रखनेवाले से तो अच्छी ही दिख रहा हूं. और पढ़ लिया क्या लिखा है- इट्स माइ शो. वैसे एक बात कहूं, तुम्हें इस तरह की चीजें लिखी टीशर्ट नहीं पहननी चाहिए... इट्स माइ शो... आखिर तुम खुद अपने को मेल चावइज्म की कॉमडिटी बताती हो."
"बस-बस रहने दो. अब नुक्कड नाटक की रिहर्सल यही मत करने लगो. लेकिन तुम्हें पता है ये लोअर और टीशर्ट मैं पहले दो बार पहन चुकी हूं और धोने के लिए इसे खूंटी पर टांग रखी थी."
नीर बिना कुछ बोले ड्रेसिंग टेबल की तरफ बढ़ता है और स्पिंज को इतनी जोर से दबाता है कि एक बूंद भी डियो उसके भीतर न रहे.
"लो अब तो कोई नहीं कहेगा न कि एक तो लड़की के कपड़े पहन लिए और उपर से इतने गंदे की स्मेल आ रही है. अरे पागल, ये तो उससे भी ज्यादा नौटंकी हो गई...कपड़े के साथ-साथ डियो भी लड़की की?"
"आखिर तू चाहता क्या है, रुक जाता दो मिनट तो क्या बिगड़ जाता? मैं तो कुर्ता पायजामा ला रही थी न?"
"कुछ भी तो नहीं. बस ये कि मैं इस इलाके से गुजर रहा था तो इतनी तेज बारिश होने लगी कि मुझे समझ नहीं आया कि क्या करुं? पिछले दो घंटे से भीग रहा था. मन में आया कि कुछ कामचलाऊ कपड़े लेकर किसी रेस्तरां के वाशरुम जाकर बदल लूं लेकिन फिर तुम्हारा ध्यान आया कि अरे नीलिमा भी तो इधर ही रहती है, वहीं चलते हैं. यकीन मानो, जब तुम्हारे यहां चलने का मन बनाया तो दिमाग में ये बात बिल्कुल नहीं थी कि अगर तुम्हारा ब्ऑयफ्रैंड होगा तो इसे किस तरह से लेगा? मेरे दिमाग में ये भी नहीं आया कि अगर तुम्हारी खूसट मकान मालकिन ने दूसरे कपड़े में बाहर निकलते देख लिया तो क्या सोचेगी? मैं तो बस ये सोच रहा था कि निखिल की कोई न कोई टीशर्ट और लोअर तो होगी ही, पहन लूंगा... कौन पैसे फसाए... नहीं तो तुम्हारी ही जिंदाबाद. मुझे तुम्हारे लड़की होने के पहले दोस्त होने का ख्याल आया और मैं बस चला आया. एनीवे, मैं ये तुम्हारे कपड़े लौटा दूंगा या फिर उस बारिश और मौके का इंतजार करुंगा जब तुम फ़ोन करके कहोगी- यार नीर ! मेरे कपड़े होंगे न तेरे पास... देख न आज मैं इधर जंगपुरा आयी थी और बारिश में बुरी तरह फंस गई."
पानी की जाति / विष्णु प्रभाकर
बी.ए. की परीक्षा देने वह लाहौर गया था। उन दिनों स्वास्थ्य बहुत ख़राब था। सोचा, प्रसिद्ध डा0 विश्वनाथ से मिलता चलूँ। कृष्णनगर से वे बहुत दूर रहे थे। सितम्बर का महीना था और मलेरिया उन दिनों यौवन पर था। वह भी उसके मोहचक्र में फँस गया। जिस दिन डा0 विश्वनाथ से मिलना था, ज्वर काफी तेज़ था। स्वभाव के अनुसार वह पैदल ही चल पड़ा, लेकिन मार्ग में तबीयत इतनी बिगड़ी कि चलना दूभर हो गया। प्यास के कारण, प्राण कंठ को आने लगे। आसपास देखा, मुसलमानों की बस्ती थी। कुछ दूर और चला, परन्तु अब आगे बढ़ने का अर्थ ख़तरनाक हो सकता था। साहस करके वह एक छोटी-सी दुकान में घुस गया। गांधी टोपी और धोती पहने हुए था।
दुकान के मुसलमान मालिक ने उसकी ओर देखा और तल्खी से पूछा-- "क्या बात है?"
जवाब देने से पहले वह बेंच पर लेट गया। बोला-- "मुझे बुखार चढ़ा है। बड़े ज़ोर की प्यास लग रही है। पानी या सोडा, जो कुछ भी हो, जल्दी लाओ!"
मुस्लिम युवक ने उसे तल्खी से जवाब दिया-- "हम मुसलमान हैं।"
वह चिनचिनाकर बोल उठा-- "तो मैं क्या करूँ?"
वह मुस्लिम युवक चौंका। बोला-- "क्या तुम हिन्दू नहीं हो? हमारे हाथ का पानी पी सकोगे?"
उसने उत्तर दिया-- "हिन्दू के भाई, मेरी जान निकल रही है और तुम जात की बात करते हो। जो कुछ हो, लाओ!"
युवक ने फिर एक बार उसकी ओर देखा और अन्दर जाकर सोडे की एक बोतल ले आया। वह पागलों की तरह उस पर झपटा और पीने लगा।
लेकिन इससे पहले कि पूरी बोतल पी सकता, उसे उल्टी हो गई और छोटी-सी दुकान गन्दगी से भर गई, लेकिन उस युवक का बर्ताव अब एकदम बदल गया था। उसने उसका मुँह पोंछा, सहारा दिया और बोला-- "कोई डर नहीं। अब तबीयत कुछ हल्की हो जाएगी। दो-चार मिनट इसी तरह लेटे रहो। मैं शिंकजी बना लाता हूँ।"
उसका मन शांत हो चुका था और वह सोच रहा था कि यह पानी, जो वह पी चुका है, क्या सचमुच मुसलमान पानी था?
पोर्नसाईट / दीपक मशाल
“ओए, ज़ल्दी घर आजा कोई है नहीं अभी।। एक मस्त धमाकेदार चीज़ दिखाता हूँ।”
दूसरी तरफ़ से आवाज़ उभरी- “पर है क्या स्साले ये तो बता। इतना उछल क्यों रहा है?”
“अबे इधर आ तो सही, तेरी बांछें खिल जायेंगी देखते ही” उसने जवाब दिया
“मेरे भाई तुझे पता है ना। कि मैं हाई बी.पी. का मरीज़ हूँ। बता दे वरना कोई हिंट ही दे दे। कहीं ऐसा ना हो कि एक्साईटेशन में मुझे मुश्किल हो जाए।” दूसरी तरफ़ बेचैनी बढ़ रही थी।
“ओक्के। पर बस हिंट दूंगा। तुझे मेरे सामने वाले मकान में रहने वाली जो चमेली पसंद है वो अब अपने हाथ में होगी।”
बात ख़त्म होने से पहले ही दूसरे तरफ़ से फिर एक बेक़रार आवाज़ भर्राई- “लेकिन कैसे भाई ये तो बता दे।”
“तू आ तो जा साले ज़ल्दी। नेट पर मस्त एमएमएस दिखाता हूँ।”
“ओह।। सही बिडू समझ गया सब। बस 10 मिनट में पहुंचा अभी। अब तो रुका नहीं जा रहा।”
थोड़ी देर बाद दरवाज़े की घंटी बजती है।
“हाय मेरी जान, आ गया तू, सही टाइम पर आया। मैं और एमएमएस ढूंढ रहा था। चल तू देख मैंने वेबसाईट खोल रखी है। तेरी भाभी तो है नहीं मैं पैग बना के लाता हूँ फटाफट, आज तो पार्टी होनी चाहिए।”
“हाँ वो ज़रा प्याज भी काट लेना पीनट्स के साथ।”
“ओके डिअर। पर सिगरेट है ना तेरे पास या ज़ल्दी से भाग के ले आ ।”
“नहीं तू फ़िक्र ना कर पूरी डिब्बी है।”
सलीम अन्दर प्याज काटने में लगा था कि अचानक- “ओए सलीम ज़ल्दी इधर आ कमीने, तूने बताया नहीं कभी।”
“क्या।।” सलीम ने किचेन से बाहर आते हुए पूछा।
“तूने ये भाभी का क्लिप बना के कब डाला वेब पर?? जो भी हो मस्त हैं भाभी।। मैं तो पहली बार उन्हें इस तरह।”
चटाक।। थप्पड़ की एक ज़ोरदार आवाज़ के साथ सलीम के दोस्त की आवाज़ बीच में कट गई।
कम्प्यूटर बंद हो गया था। सलीम अपनी बीवी का फ़ोन ट्राई कर रहा था।
फ़र्क / विष्णु प्रभाकर
उस दिन उसके मन में इच्छा हुई कि भारत और पाक के बीच की सीमारेखा को देखा जाए, जो कभी एक देश था, वह अब दो होकर कैसा लगता है? दो थे तो दोनों एक-दूसरे के प्रति शंकालु थे। दोनों ओर पहरा था। बीच में कुछ भूमि होती है जिस पर किसी का अधिकार नहीं होता। दोनों उस पर खड़े हो सकते हैं। वह वहीं खड़ा था, लेकिन अकेला नहीं था-पत्नी थी और थे अठारह सशस्त्र सैनिक और उनका कमाण्डर भी। दूसरे देश के सैनिकों के सामने वे उसे अकेला कैसे छोड़ सकते थे! इतना ही नहीं, कमाण्डर ने उसके कान में कहा, "उधर के सैनिक आपको चाय के लिए बुला सकते हैं, जाइएगा नहीं। पता नहीं क्या हो जाए? आपकी पत्नी साथ में है और फिर कल हमने उनके छह तस्कर मार डाले थे।"
उसने उत्तर दिया,"जी नहीं, मैं उधर कैसे जा सकता हूँ?" और मन ही मन कहा-मुझे आप इतना मूर्ख कैसे समझते हैं? मैं इंसान, अपने-पराए में भेद करना मैं जानता हूँ। इतना विवेक मुझ में है।
वह यह सब सोच रहा था कि सचमुच उधर के सैनिक वहाँ आ पहुँचे। रौबीले पठान थे। बड़े तपाक से हाथ मिलाया।
उस दिन ईद थी। उसने उन्हें 'मुबारकबाद' कहा। बड़ी गरमजोशी के साथ एक बार फिर हाथ मिलाकर वे बोल-- "इधर तशरीफ लाइए। हम लोगों के साथ एक प्याला चाय पीजिए।"
इसका उत्तर उसके पास तैयार था। अत्यन्त विनम्रता से मुस्कराकर उसने कहा-- "बहुत-बहुत शुक्रिया। बड़ी खुशी होती आपके साथ बैठकर, लेकिन मुझे आज ही वापस लौटना है और वक्त बहुत कम है। आज तो माफ़ी चाहता हूँ।"
इसी प्रकार शिष्टाचार की कुछ बातें हुई कि पाकिस्तान की ओर से कुलांचें भरता हुआ बकरियों का एक दल, उनके पास से गुज़रा और भारत की सीमा में दाखिल हो गया। एक-साथ सबने उनकी ओर देखा। एक क्षण बाद उसने पूछा-- "ये आपकी हैं?"
उनमें से एक सैनिक ने गहरी मुस्कराहट के साथ उत्तर दिया-- "जी हाँ, जनाब! हमारी हैं। जानवर हैं, फर्क करना नहीं जानते।"
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जुगाड़ का इस्तेमाल कोई इनसे सीखे, - YouTube साहित्य का अर्थ - YouTube बाईक पे जबरदस्त जुगाड़ 😲😲😲 - YouTube जुगाड़ का इस्तेमाल करना कोई इनसे सीखे.. - YouTube वैरागी का अर्थ जाने - YouTube जुगाड़ु भारत जुगाड़ का प्रयोग करना किसी से सीखना! - YouTube त्रिशर का अर्थ - YouTube

अगर आप जुगाड़ नाम का मतलब, अर्थ, राशिफल के साथ जुगाड़ नाम की राशि क्या है जानना चाहते हैं, तो यहाँ Jugaad naam ka meaning, matlab, arth in hindi के साथ Jugaad naam ki rashi kya hai बताई गई है। शुभ समय में शुरु किया गया कार्य अवश्य ही निर्विघ्न रूप से संपन्न होता है। लेकिन दिन का कुछ समय शुभ कार्यों के लिए उपयुक्त नहीं माना जाता है जैसे राहुकाल। Advertisement दुनिया का सबसे अनोखा आंदोलन, बेस्ट जुगाड़ और मशीनें, देखिए कमाल की मशीनें बड़े व्यावसायिक घराने व्यवसाय की प्रगति के लिए ‘M-2’ रणनीतियां लागू करते अच्छा, अब्बा, दीदी समेत 70 भारतीय शब्दों को वैश्विक पहचान मिली है। प्रतिष्ठित अंग्रेजी की डिक्शनरी ऑक्सफर्ड में हिंदी, उर्दू, तमिल, तेलुगु और गुजराती के ‘जुगाड’ का कोई स्टाप नहीं होता। सवारियां उसे जहां चाहें रोक सकती हैं। ज़्यादातर लोग ‘जुगाड़’ को अपने घरों के आगे रूकवाते हैं। ‘जुगाड़’ में मनुष्य ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी में शामिल हुआ फुकरे का फेमस शब्द ‘जुगाड़’ Sanjeev Mishra October 29, 2017. 3 1 minute read. नई दिल्ली। ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी में हिंदी के एक बेहद चर्चित और इस्तेमा� Desi Jugad संसार में हर जगह जुगाड़ का बोल बाला है, देशी हो या विदेशी हर जगह काम निकालने का कोई न कोई जुगाड़ चल ही जाता है। देखिए देसी जुगाड़ की ऐसी ही कुछ चार साल पहले, चार फुकरों ने “जुगाड़” शब्द का एक नया अर्थ देश को दिया था। अब जब इस साल फुकरे अपनी अगली कड़ी “फुकरे रिटर्न्स” के साथ वापसी करने के लिए तैयार रीसाइकलिंग का अर्थ है पुरानी चीजों या इस्तेमाल न की जाने वाली टूटी-फूटी चीजों को इस्तेमाल के लायक बनाना। रीसाइकलिंग कई चीजों की हो अंग्रेजी मे अर्थ Pronunciation of जुगत (जुगाड़) का आदमी बनना (जुगत (जुगाड़) का आदमी बनना) Meaning of जुगत (जुगाड़) का आदमी बनना

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